शब्दकल्पद्रुमः आइकन

1.5 by Srujan Jha


Jun 24, 2019

शब्दकल्पद्रुमः के बारे में

इस विश्वकोष में संस्कृत केशब्द उनके लिंग उनके अर्थ तथा सन्दर्भ दिया गया है ।

शब्दकल्पद्रुम संस्कृत का आधुनिक युग का एक महाशब्दकोश है। यह स्यार राजा राधाकांतदेव बाहादुर द्वारा निर्मित है। इसका प्रकाशन १८२८-१८५८ ई० में हुआ। यह पूर्णतः संस्कृत का एकभाषीय कोश है और सात खण्डों में विरचित है। इस कोश में यथासंभव समस्त उपलब्ध संस्कृत साहित्य के वाङ्मय का उपयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त अंत में परिशिष्ट भी दिया गया है जो अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐतिहसिक दृष्टि से भारतीय-कोश-रचना के विकासक्रम में इसे विशिष्ट कोश कहा जा सकता है। परवर्ती संस्कृत कोशों पर ही नहीं, भारतीय भाषा के सभी कोशों पर इसका प्रभाव व्यापक रूप से पड़ता रहा है।

यह कोश विशुद्ध शब्दकोश नहीं है, वरन् अनेक प्रकार के कोशों का शब्दार्थकोश, प्रर्यायकोश, ज्ञानकोश और विश्वकोश का संमिश्रित महाकोश है। इसमें बहुबिधाय उद्धरण, उदाहरण, प्रमाण, व्याख्या और विधाविधानों एवं पद्धतियों का परिचय दिया गया है। इसमें गृहीत शब्द 'पद' हैं, सुवंततिङ्गन्त प्रातिपदिक या धातु नहीं।

शब्दकल्पद्रुम में पाणिनिव्याकरण के अनुसार प्रत्येक शब्द की व्युत्पत्ति दी गई है, शब्दप्रयोग के उदाहरण उद्धृत हैं तथा शब्दार्थसूचक कोश या इतर प्रामाणों के समर्थन द्बारा अर्थनिर्देश किया गया है। पर्याय भी दिए गए है। धातुओं से व्युत्पन्न क्रियापदों के उदाहरण भी दिए गए हैं। पदोदाहरण आदि भी हैं। कुछ थोड़े अतिप्रचलित वैदिक शब्दों के अतिरिक्त शेष नहीं हैं। शब्दों की विस्तृत व्याख्या में दर्शन, पुराण, वैद्यक धर्मशास्त्र आदि नाना प्रकारों के लंबे लंबे उद्धरण भी दिए गए है। तंत्र मंत्र, शास्त्र, स्त्रीत्न आदि से उद्धृत करते हुए अनेक संपूर्ण स्त्रोत्, तांत्रिक मंत्र आदि के भी विस्तृत अंश उद्धारित हैं। ज्योतिषशास्त्र और भारतीय विद्याओं के परिभाषिक शब्दों का भी उन विद्याओं के विशेषज्ञों के सहयोग से सप्रमाण विवरण दिया गया है। इसमें कोश की रचनापरिपाटी के विषय में भी विस्तृत वक्तव्य दिया गया है। उन कोशों की सूची भी दी गई है जो उपलब्ध थे और जिनसे शब्दसंग्रह किया गया है। साथ ही विभिन्न कोशों में उल्लिखित पर अनुपलब्ध कोशों अथवा कोशकारों के नाम भी भूमिका में दिए गए हैं।

चूँकि यह एक महाकोश है । तथा मोटे मोटे पाँच भागों में ग्रन्थ के रूप में ग्रथित हैं अतः सम्भव नही कि इसका उपयोग विद्वान, अध्येता या शोधकर्ता सहजतया कर सकें । यही सोच कर हमने ऐसे प्रयाश किया कि अव शब्दकल्पद्रुम सभी के हाथ में उपलब्ध हो । यदि अन्य व्याकरणशास्त्रीय संसाधनों (जो मेरे मार्गदर्शन में निर्मित है ) की तरह यह संसाधन भी आप के लिए उपयोगी होता है तो मेरा ये परिश्रम सफल होगा तथा अन्य शास्त्रों में भी प्रवेश करने का भविष्य में प्रयास करुंगा ।

शब्दकल्पद्रुमो राजराधाकान्तबहाद्दूरस्य रचना । कल्पद्रुमः स्वर्गेऽस्तीति, स्वच्छायाम् आश्रितानां सर्वेषामप्यभीष्टार्थान् पूरयतीति च प्रसिध्दम् । एवमेव ये स्वाभीष्टशब्दानामर्थान् वा तदभिधानाभिधेयान् विचारान् वा प्राप्तुकामाः सन्त उपसर्पन्ति प्रकृतमपि कोशं तेषां सर्वेषां तत्तदभीष्टपूरणं करोतीति कारणात् “शब्दकल्पद्रुम” इति संज्ञितः कोश एष इति स्वयं कोषकर्ता ज्ञापयति ।

बृहदाकारः एतदर्थं एकस्मिन् ऐप मध्ये व्यवस्थापनं दुरूहमिति विचिन्त्य अस्य संसाधनस्य भागद्वयं सम्पादितम् । दर्शनेनैतस्य झटित्यस्माकं हृदये स्फुरति प्रसिध्दो महाभारतीयः श्लोकः-“ यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्” इति । समस्तानां शब्दानां व्युत्पत्तिः, शब्दानामुपलभ्यमानाः सर्वेऽर्थाः, प्रायेण सर्वेषामप्यर्थानामस्तित्वे प्रयोगैः साक्ष्याणि, विशिष्टविवरणसापेक्षेषु स्थलेषु मूलग्रन्थैः समग्रा उध्दृतयः, अस्मिन् लघुसंसाधने समग्राणां ग्रन्थानां सर्वे भागाः-इत्यादिकं वैशिष्ट्यमस्य् कोशसंसाधनस्य ।

भूयस्सु स्थलेषु मूलग्रन्थानां केचन भागाः समग्रा यदत्र दत्तारस्तत् अनल्पाय गर्वाय समभूद् विदुषामेतत्कोषजुषां दोषज्ञानाममुद्रितमुख्यग्रन्थे काल इत्यत्र न संशयकणिका । हस्तप्रतिशास्त्रदृष्टया अनेकेषु ग्रन्थभागेषु उत्कृष्टाः पाठा अत्र दत्तेषु पाठयभागेषूपलभ्येरन् । मातृकाविज्ञाने सुज्ञाना नात्र पातितकटाक्षा इति तु भूरि विषाद्यम् । शब्दकल्पद्रुमेऽधुना सर्वत्र समुपलभ्यमाने मुद्रितानां वर्णानां विन्यासाः सर्वथाऽप्यहृद्या ये द्रष्टृणां हृदये दर्शनानुपदं संस्कृताभिमानस्य ह्रसिष्णुतामुत्पादयन्तीव ।

शब्दकल्पद्रुमः नाम पुस्तकम् अद्भुतम् अस्ति। शब्दकल्पद्रुमे शब्दाः सरलतया द्रष्टुं शक्यन्ते। शब्दकल्पद्रुमे शब्दानाम् अर्थं संस्कृतभाषायाम् एव अस्ति तेषाम् उपयोगानाम् उदाहरणानि अपि सन्ति । संस्कृतशिक्षणाय शब्दकल्पद्रुमः एन्ड्रॉयड संसाधने मया व्यवस्थापितः।

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